कैंसर मानवता के लिए श्राप

कभी पंजाब देश में मीठे जल का एक बड़ा सूबा माना जाता था, लेकिन आज मीठा जल इतना कड़वा हो चुका है कि यहां का पानी पीने लायक भी नहीं बचा है। आज पंजाब देश में कैंसर जैसे दंश से सबसे प्रभावित प्रदेशों में प्रथम स्थान पर है। इसका मुख्य कारण धरती के नीचे का पानी जोकि बिल्कुल पीने लायक नहीं रहा, और फसलों पर तरह-तरह के कैमिकल कीटनाशकों का छिड़काव है। आधुनिकता के दौर में अब हम प्राकृतिक जल स्रोतों को भी जहर बनाने में कोई कमी नहीं छोड़ रहे हैं। प्रकृति भी हमें दिया हुआ सूत समेत वापिस कर रही है, जिसका खामियाजा इंसान भुगत तो रहा है परन्तु आरामदायक जिंदगी ने उसकी आंखों में पट्ट‍ी बांध दी है।

पीड़ाग्रस्त पंजाबियों को ले जाने वाली कैंसर ट्रेन
कैंसर की महामारी की चपेट में पंजाब किस तरह से धस रहा है इसका अंदाजा आप एक ट्रेन से लगा सकते हैं जिसकी असली पहचान जम्मू-अहमदाबाद के नाम से थी, लेकिन आज के समय में उसकी पहचान कैंसर ट्रेन के नाम से हो रही है। जी हां रोजाना जम्मू से चलकर यह ट्रेन बठिंडा में रात 9 बजे पहुंचती है। पांच मिनट रुकने के बाद बीकानेर के लिए रवाना हो जाती है। यह ट्रेन अपने साथ न जाने कितने सपने, कितनी उम्मीदें लेकर दौड़ती है। हर शख्स सीने में अपना दर्द छिपाए इसमें सवार होता है। सैंकड़ो लोग अपनी पीड़ा लिए इस ट्रेन में सफर करते हैं और बीकानेर के आचार्य तुलसी कैंसर अस्पताल एवं अनुसंधान केंद्र में पहुंच करते हैं। ट्रेन पूरी तरह से भरी होती है, ज्यादातर मुसाफिर कैंसर पीड़ित होते हैं, सीट न मिलने के कारण लोग ट्रेन के फर्श पर भी बैठ जाते हैं।

कैंसर का प्रभाव अब इंसान की जड़ों पर
इस नामुराद बिमारी का असली असर हमारी आने वाली पीढ़ी पर पढ़ रहा है, पंजाब के कुछ जिले जहां पर कैंसर के मरीज़ों की संख्या ज्यादा है वहां पर नवजन्मे बच्चे अंगहीन पैदा हो रहे हैं, जोकि चिंता का विषय है।

अपना सब कुछ बेचकर भी जीवन बचाने में असमर्थ लोग
पंजाब में चिकित्सा का स्तर इतना गिरा हुआ है कि इन लोगों को एक लम्बी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है, जहां पर पैसे और यहां तक जमीन-जायदाद भी बेच कर यहां के लोगों को इस नामुराद बिमारी से निजात दिलवाने में हमारे चिकित्सालय और काबिल डाक्टरों की कमी आड़े आती है। ज्यादातर लोग तो इलाज के अभाव से अपने प्राण भी गंवा चुके हैं, सबसे बड़ी विडम्बना का है कि ज्यादातर लोगों की इस नामुराद बिमारी का पता अंतिम स्टेज पर आकर ही चलता है, जब देर बहुत ज्यादा हो जाती है।

अभी नहीं संभले तो अगली पीढ़ी भी गंवा देंगे
अभी भी वक्त है अगर हम संभल जाएंगे तो इस नामुराद बिमारी को रोका जा सकता है। प्राकृतिक स्रोतों से खिलवाड़ करना बंद करना होगा, कैमिकलयुक्त खेती जमीन को बंजर भी बना रही है, जल स्रोतों को कड़वा कर जहर बना रही है, अगर समय रहते इस पर नुकेल कसी गई तो हम अपनी आने वाली पीढ़ी को एक सुरक्षित और खुशहाल जीवन दे पाएंगे।

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