पानी प्यास बुझाने का जरिया नहीं माँ की ममता, परिवार का सहारा और ज़िंदगी की आखिरी उम्मीद है
पानी की कीमत
नीरपुर गांव कभी पानी की मीठी नदियों और हरे-भरे खेतों के लिए जाना जाता था। लेकिन अब… सब सूख गया था। जमीन फट चुकी थी, कुएं प्यासे थे और लोगों की आंखों में थकान बस गई थी।
रोहन सिर्फ दस साल का था, लेकिन उसकी आंखों में उम्र से बड़ी समझदारी थी। हर सुबह वो अपनी माँ के साथ आधे घंटे पैदल चलकर एक छोटी सी झील से पानी लाता। उसकी माँ बीमार रहती थी, पर फिर भी रोहन के साथ चलती, क्योंकि पानी दोनों के लिए ज़रूरी था।
एक दिन माँ की तबियत बहुत बिगड़ गई। बुखार में तपती माँ ने बस इतना कहा,
“बेटा, थोड़ा पानी…”
रोहन भागकर गिलास में पानी लाया, लेकिन गिलास में सिर्फ दो घूंट ही थे।
माँ ने कांपते हाथों से गिलास लिया, और रोहन की आंखों में देखती रही। फिर वो दो घूंट पानी रोहन को वापस दे दिए,
“तू पी ले, बेटा। तुझे जीना है…”
उस दिन रोहन की आंखों से आंसू नहीं रुके। वो समझ गया पानी सिर्फ प्यास बुझाने का जरिया नहीं, ये तो माँ की ममता, परिवार का सहारा, और ज़िंदगी की आखिरी उम्मीद है।
रोहन ने ठान लिया, अब वो कुछ करेगा। गांव के बच्चों के साथ मिलकर उसने हर घर में पानी बचाने की मुहिम शुरू की। उन्होंने ने बारिश का पानी इकट्ठा करना सीखा, और हर एक बूंद को इकठ्ठा किया।
एक साल बाद, नीरपुर में पहली बार जोरदार बारिश हुई। रोहन दौड़कर बाहर गया, आसमान से गिरते पानी की हर बूंद उसकी आंखों से मिले आंसुओं जैसी थी, साफ, सच्ची और ज़रूरी।
माँ अब सब ठीक है।
और रोहन ? वो अब सिर्फ पानी नहीं लाता था,
वो उम्मीद भी लाता था, हर सुबह।
हिंदआर्टिस्ट / www.hindartist.com