माटी की बेटी/ Poor child

“माटी की बेटी”

कच्ची पगडंडियों के उस छोटे से गाँव में सुमन पैदा हुई थी। गरीब बस्ती का नाम सुनते ही लोग मुँह फेर लेते थे। सुमन बचपन से देखती आई थी-
अपनी मां के साथ कुएँ का पानी लेने जाने के लिए मिलों तक पैदल चलना, अपने भारी थके हुए कदमों के साथ घर वापिस आते-आते जान ही निकल जाती। पर सुमन ने हार नहीं मानी। स्कूल जाते समय वो अपनी किताबों को सीने से भींच लेती और कहती
“मैं भी इंसान हूँ। मेरे भी सपने हैं।”
दिन में खेतों में मजदूरी करती, रात को दीये की कमजोर रोशनी में पढ़ाई।
माँ के फटे आँचल, पिता के झुके हुए कंधे उसे तोड़ नहीं पाए।
उनके दुख ही उसके हौसले का पहाड़ बनते चले गए।

गाँव में जब पहली बार सुमन का नाम हाईस्कूल की मेरिट लिस्ट में आया, तो गाँव के ऊँचें लोग चुप थे, पर उसकी बस्ती गा रही थी-
“हमारी बिटिया चमक गई!”

लेकिन मुश्किलें खत्म नहीं हुईं।
कॉलेज में दाखिला लेने पहुँची, तो उसे दुत्कार मिली। गरीब परिवार में पैदा हुई सुमन शहर के बोर्डिंग हॉस्टल में कोई उसको अपने साथ नहीं बैठने देता और न ही खेलने के लिए तैयार होता।
सुमन चुप रही – चुप नहीं, मजबूत रही।

उसने अपने आँसू भी पढ़ाई में बदल दिए।
वो जानती थी-
“मेरी चुप्पी, मेरा संघर्ष, एक दिन कई लड़कियों की आवाज़ बनेगा।”

सालों की तपस्या के बाद एक दिन सुमन का सपना पूरा हुआ-
एक गरीब घर में पैदा हुई बच्ची अपने गाँव की पहली महिला अफसर बन गई।

जब वर्दी पहनकर गाँव लौटी, वो सुमन जो इतनी गरीबी में पैदा हुई और लोगों के सामने दिए की कमजोर रोशनी के साथ पढ़ाई लिखाई करते देखाई देती थी, आज वहीं लोग उसे रास्ते में झुककर सलाम कर रहे थे।
सुमन ने वापिस लोटते ही अपने गाँव में एक नया स्कूल खुलवाया-
जहाँ हर बच्चा, चाहे किसी भी जाति-धर्म का हो, एक ही बेंच पर बैठकर पढ़ेगा।

सुमन जानती थी, वह कोई बड़ी नेता नहीं थी, न नायक की तरह भाषण देती थी।
लेकिन उसका मौन संघर्ष, उसका ठहराव, उसकी तपस्या-
आज सौ बेटियों के सपनों को रास्ता दे रही थी।

वह सचमुच थी-
“माटी की बेटी”, जिसने माटी से उठकर पूरे आसमान को छू लिया।

यह कहानी सिर्फ एक सुमन की नहीं है,
यह हर उस औरत की है एक गरीब घर में पैदा होकर कुछ एसी मिसाल पैदा करनी चाहती है पर मजबूर….

हिंदआर्टिस्ट / www.hindartist.com

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