भूख की इस तड़प को इस पेटिंग में एक बड़ी सी रोटी में इस आर्ट को दिखाया गया है.
भूख से किसी की मौत होना ही बहुत ही दर्दनाक और भयावह दुर्घटना है. दुनिया की बात करें तो बस एक अनुमान है कि हर साल भोजन से महरूम होने पर करीब 25 लाख लोगों की जान चली जाती है. दुनिया भर की सरकारों के पास आधिकारिक आंकड़े नहीं हैं लेकिन भूख से बचाए गए आंकड़ों से पता चलता है कि शायद अरबों लोगों का पेट सरकारें ही भर रही हैं. डाउन अर्थ की एक रिपार्ट बताती है कि कब, कहां और कितने लोग भूख और कुपोषण से बेमौत मारे गये यह कोई नहीं जानता. आश्चर्य है ‘भूख से हुई मौत’ की गणना अधिकृत रूप से कोई सरकारी विभाग नहीं करती, बल्कि संबंधित जानकारियों और आंकड़ों का आधिकारिक स्रोत मीडिया रिपोर्ट को मान लिया जाता है.
इस पेटिंग में एक पिता अपनी बच्चे के साथ दुनियां की तरक्की की तरफ देखकर अपनी खाली थाली को देखता हुआ.
यही कारण है कि 17 जनवरी 2022 को माननीय सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष भारत सरकार द्वारा यह बयान दिया गया कि भारत के किसी भी राज्य के पास ‘भूख से होने वाली मौतों’ की कोई अधिकृत जानकारी नहीं है. वर्ष 2018 में संयुक्त राष्ट्र संघ के विश्व खाद्य और कृषि संगठन द्वारा जारी रिपोर्ट में बताया गया कि भारत में लगभग 19 करोड़ लोग भूख और कुपोषण से पीड़ित हैं, अर्थात विश्व के लगभग 24 फीसदी कुपोषित और भूखे लोग इस देश मे हैं. सामान्य ज्ञान के दायरे में माना जाता है कि यह राज्य का नैतिक-राजनैतिक दायित्व है कि वह भूख और कुपोषण से पीड़ित लोगों को अनाज मुहैया करवाये. लेकिन भूख और कुपोषण के मूल कारणों का पता लगानें और उसका समाधान करने में राज्य, अब तक ‘असामान्य अज्ञानता’ का शिकार रहा है. एकता परिषद के राष्ट्रीय महासचिव रमेश शर्मा कहते हैं कि आजाद भारत में अब तक राज्य के द्वारा गरीबी और भुखमरी से मुक्ति के नाम पर घोषित और पोषित योजनायें तो आधी-अधूरी ही रही हैं. यहां तक कि भूमि तथा कृषि सुधार के नये-पुराने कानून तक, अपूर्ण क्रियान्वयन और अक्षम व्यवस्था के सार्वजनिक शिकार रहे हैं.
इस पेटिंग में यह दिखाने की कोशिश की गई है कि पेड़ पर करोड़ो पत्ते अगर हरे होते हैं तो लाखों पत्ते सूखे भी है.