Comrade’s conversation/ कॉमरेड की बड़बड़ / शांति पर्व / देस राज काली

comrade’s conversation

कॉमरेड की बड़बड़ / शांति पर्व / देस राज काली

देखिए जो स्टेट है, या जो अन्य ताकतें हैं, ये टैरर का सहारा लेती हैं। राज्य चाहे कोई भी हो, यानी चाहे आजकल का लोकतांत्रिक राज्य हो, इंडियन डैमोक्रेसी है, अमेरिका की डैमोक्रेसी है। स्टेट जो है या स्टेट की जो अलग-अलग ताकतें हैं, जिन्हें उस स्टेट के अस्तित्व से फायदा पहुंचता है या नुकसान, वह हमेशा ताकत का इस्तेमाल करके विरोधियों को दबाता है। एक-दूसरे के विरोधियों को। दबाने के उनके जो क्रूर तरीके हैं, उसे टैररिज़्म कहते हैं। भले बातचीत के ज्रिए हो… दबाने का तरीका तो होता ही है ना… अगर लॉफुल तरीके अपनाए जाएं, तो बात और है… अगर उसके लिए क्रूर तरीके अपनाए जाएं, दैट इका टैररिज़्म। टैररिज़्म का अर्थ यह कि लोगों को अपनी बात कहने से रोकना, और उनसे अपनी बात जबरन करवाना। दैट इका टैररिज़्म। यह टैरर आज का नहीं है। सिर्फ शब्द अभी प्रचलित हुआ है। यह टैरर तो, मतलब चंगेज खां का भी टैरर था। जो हम पर हमले करता थे, वह भी टैरर था। फ्यूडलिजम का भी टैरर था। गुलामी का जो दौर था, वह भी टैरर था। रोमन इंपायर का भी टैरर था। रोमन इंपायर ने जो गुलाम रखे हुए थे, वह भी तो टैरर ही था। और जो मॉडर्न टैररिज़्म है, इसकी बात करते हैं।  दूसरा जो यह टैररिज़्म होता है, यह माइनोरिटी का होता है, मेजोरिटी का नहीं। जो माइनोरिटी अपने आप को समझती है कि हम अपनी बात नहीं मनवा सकते। वह समझती है या उसमें यह कट्टरता आ जाती है कि हमारी बात जायका है। हमें तो अपनी बात मनवानी ही मनवानी है। वह फिर ताकत का सहारा लेती है। जिस वक्त वह ताकत का इस्तेमाल करती है और चूंकि वह कट्टर होती है, तो फिर वह हिंसा तक जाती है। मरना-मारना, बम फेंकना, यानी लोगों को दहशतकादा करना, ताकि अगर स्टेट डिफैंड करती है, तो डिफैंडर के साथ न खड़े होना। पारदर्शी बन जाए, और वह स्टेट को दबाकर, स्टेट की अथारिटी को खत्म कर दे। ताकि लोग समझें कि स्टेट हमारी हिफाकात नहीं कर सकती। 

…अब जैसे पंजाब में हुआ, जो पुलिस थी, वह कुछ नहीं कर रही थी। जो एग्जीक्यूटिव क्लास था, सहमा बैठा था। उन्होंने अपने गनमैन ले रखे थे। डीसी निकलता था 10-15 सिपाही लेकर। जज जो थे, वे कोई फैसला नहीं दे रहे थे छोटी अदालतों में। वे तारीख बदल देते थे या दबाव में आ जाते थे। मतलब वह टैरर था, जो काउंटर टैरर करने वाला था, वह फिर जिस वक्त उसके तरीके आते हैं, फिर स्टेट टैरेरिकाम आता है। क्योंकि वैसे तो रुकना नहीं। लॉफुल मीन्स जो हैं, जो हमारे कानून हैं, मतलब लोकतंत्र के जो कानून हैं, वह रॉ, वह एविडेंस एक्ट, कौन गवाही दे कि गोली मारी है, बंदूक कहां से आई है, उसे साबित करना बहुत मुश्किल हो जाता है। फिर उस टैरर के मुकाबले स्टेट टैरेरिकाम आता है। ऐसा सभी स्टेट्स करती हैं। यूरोप में भी हुआ। होम एक्ट जो हैं, होम रुल बनाए उन्होंने। बर्तानिया ने जो रुल बनाए… अब वह जो ब्राजिलियन था, उसके बारे में $खबर मिली कि वह टैरेरिस्ट आदमी है…। उसका पीछा किया जाने लगा, वह बाहर निकला, उन्होंने उसे गोली मार दी…। उसे पूछे बगैर ही…। एक नहीं, कई गोलियां दागीं…! 

‘मादर चोद अमेरिका… मादर चोद इंग्लैंड…!’

… आपने मुझे कुछ कहा? नहीं, मुझे ऐसा लगा…! मतलब दैट इका टैरर। उसका मंतव्य यह भी हो सकता था, यही नहीं कि उसे सोच समझ कर मारा, यह भी हो सकता था कि लोगों को डराना है। स्टेट जो है, उसका कोई सीधा मंतव्य नहीं होता। उल्टा होता है, कि लोगों में दहशत पैदा करना और एक-दो को इसी तरह मार गिराना, कि ये तो दहशतगर्द थे। वह जो ब्राजिलियन मारा गया, उससे स्टेट सैक्टर इतना सहमा हुआ था कि अच्छे-बुरे का निर्णय नहीं कर पाया। किसी की गवाही ले ली कि वह टैरेरिस्ट हैं, बस उसके पीछे पड़ गए। जब वह बाहर निकला, गोलियां मार दीं। एक नहीं, कई गोलियां चलाइईं। अरे, उसकी टांग में गोली मारते। घायल कर देते। पर नहीं, उन्होंने मार ही डाला। यह जो टैररिज़्म है, नया शब्द निकला है। हमारे बीच जो पाकिस्तान है, बात यह है कि इकहत्तर की जो लड़ाई है, पहले पैंसठ में हुई। पाकिस्तानी…! क्योंकि जो पाकिस्तान है, वह भारत की एनीमटी पर, हिन्दूओं की एनीमटी पर बना… कि जो कांग्रेस है, मेजोरिटी… राज्य ही दुश्मनी से पैदा हुआ। अंग्रेजों ने मुसलमानों को शह दी, पाकिस्तान बना दिया। अंग्रेज जहां भी गए, बांट दिया… फलस्तीनियों को उन्होंने बांटा, कोरिया को बांटा, वियतनाम को बांट दिया। यह साम्राज्यवादी ताकत थी… यह उसका किरदार था… अब…! 

‘काले अंग्रेज मादर चोद …! काले अंग्रेज मादर चोद…!’

… देखिए गाली मत बकिए। बात ध्यान से सुनने लाय$क है। साम्राज्यवादी ताकतों के शातिर किरदार को समझें।… अब अंग्रेजों को जब $खतरा हुआ, तो उन्होंने जिन लोगों को खुश किया और साथ मिलाया, यह देखें। सबसे पहले उन्होंने अवधियों को लिया। इनका इतिहास भी तुम्हें बताता हूं। फिर महाराष्ट्र से जो लिए, वे महार थे। महार रेजीमैंट बनाई उन्होंने सबसे पहले। मराठों को नहीं लिया। फिर महार रेजीमैंट तोड़ दी। अब आजादी के बाद फिर महार रेजीमैंट बनाई गई। यानी अंग्रेजों ने उन समाजों या समुदायों को चुना, जो राज्य से नाराका थे। यूपी में जो राज्य था, वह मुसलमानों का था। वहां के लोग समझते थे कि हमारे साथ जायज नहीं हुआ है। अवध के जो ब्राह्मण थे, राजपूत थे, वे समझते थे कि हम भी एक ताकत हैं। वहां उन्होंने तालुकेदार कायम किए। मुसलमानों को जमीनें दे दीं, नवाबों के वक्त। उनका यह था कि जो स्टेट की सेवा करता था, यानी पेंशन का रिवाज कोई नहीं था, उन्हें कंपनसेट करने के लिए, पेंशन देने के लिए, उन्हें भाव की कामीन एलाट कर देते थे।…

… और जो फ्यूडल राज्य चलता। यह यानि हिंदुस्तान में…। यह देखिए हिंदुस्तान में बाबर का राज्य किस तरह कायम रहा। बाबर आया। बाबर ने हिंदुस्तान में तख्त जीत लिया। बैरम खां के साथ मशविरा किया। दिल्ली पहुंच गया था वह पानीपत हरा कर। उसने कहा कि हमारे पास तो बारह-तेरह हजार फौज है। फौज थक गई है। नई टुकड़ी आ नहीं सकती। बाबर क्योंकि उकाबेक था, उसकी फौज में ज्यादा हिस्सा उकाबेकों और पठानों का था। पठानों से वह डरता कि इनकी व$फादारी किसी वक्त भी… ये काबुल से आए हैं, तो वफादारी बदल सकती है। किस तरह किया जाए? उसके दो-चार जो अन्य साथी थे और बैरम खां के साथ मशविरा किया, इब्राहिम लोधी भी उसका सलाहकार था, उन्होंने सलाह दी कि तुम दरबार बुलाओ और यह ऐलान कर दो कि ‘स्टेटस को’ कायम है। जो कोई तालुकेदार, जो कोई जागीरदार है, जो इन शर्तों पर कायम है, उसकी बात सिर्फ इतनी कि हकुमत कबूल कर ले हमारी। हकुमत कबूल कर ली, उन सभी ने मान लिया। जिन्होंने नहीं की, उन्हें ताकत से दबाया। राजपूतों ने, राजस्थान वालों ने नहीं मानी, उन्हें ताकत से दबाया। इसी तरह स्टेट का स्ट्रक्चर जो, स्टेट टैरर का सहारा लेती है। एक हद तक स्टेट भी ऐसा करती है। अब जो लाठीचार्ज करते हैं… यूरोप में भी होता है… वहां कारा कम है। यहां कारा ज्यादा है। क्रूर मैथेड भी अपनाते हैं। क्योंकि लोग भी क्रूर हैं। वहां कारा… अब अमेरिका में बीस-पचीस लाख आदमी इकट्ठे हुए। स्टेट ने कहा कि सुबह आठ बजे के बाद उधर एंट्री बंद। लोग रात को ही आने शुरू हो गए। आठ बजे तक बीस-पचीस लाख लोग वहां पहुंच चुके थे। औरतें भी थीं। उन्हें किसी ने छेड़ा तक नहीं। वहां कोई बात ही नहीं हुई। इतने लोग इकट्ठे हुए…। चूंकि हमारे लोग भी फिलहाल पूरी तरह से कंट्रोल में नहीं है… हमारी स्टेट भी काोर से दबाती है…!

‘काले अंग्रेज मादर चोद …! काले अंग्रेज मादर चोद …!’

कोई गालियां बक रहा है! पता नहीं, कौन है? $खैर, मैं बात कर रहा था कि हमारे जो हिंदुस्तान में टैररिज़्म हुआ, उसके पीछे पाकिस्तान को समझना बहुत जरूरी है।… जिस वक्त अड़तालीस में लड़ाई हुई थी, उन्होंने कश्मीर पर कब्जा जमाने की कोशिश की। यह जो स्कीम थी, अंग्रेजों की थी। यह कोई पाकिस्तान की नहीं थी। क्योंकि उन्होंने गिलगित जो था, वह राजे से पहले ही ले लिया था। सेकंड वल्र्ड वार के दौरान ही। क्योंकि गिलगित की जो हदें हैं, वह अफगास्तिान से भी लगती हैं, चीनी तुर्किस्तान से भी लगती हैं, बहुत सारे बॉर्डरों से लगती हैं, और उसे उन्होंने लीका पर ले लिया था। वहां बॉर्डर एस्कोट्र्स बनाए। एक अंग्रेज कैप्टन गालिब था, उसने बनाए बोर्ड एस्कोट्र्स, जब सैंतालीस से पहले अंग्रेजों ने गिलगित उनके हवाले कर दिया था, तो वहां एक ब्रिगेडियर घनसारा राम था। उसे गवर्नर बना कर जम्मू भेज दिया, जम्मू के राजे ने। बार्डर एस्कोट्र्स ने उसे मार दिया, और जो गोरखे सिपाही थे, उन्हें भी मार दिया, और उन्होंने अपने आप को आकााद घोषित कर दिया। यह सब अंग्रेजों की साकिाश के तहत हुआ। हां, वह कामयाब नहीं हुए अपने मकसद में। लेकिन पाकिस्तान की दुश्मनी थी, जो कायम रही। फिर पैंसठ की लड़ाई हुई। पैंसठ की लड़ाई में पहली बार उन्होंने यहां आदमपुर में आदमी उतारे, उधर कश्मीर में उतारे। पर लोगों ने उन्हें शरण नहीं दी। कश्मीर में पकड़े गए, यहां भी पकड़े गए। इकहत्तर की लड़ाई से तो यह बात स्पष्ट हो गई, उन्होंने कहा था कि हम अगर हिंदुस्तान में कुछ करना चाहते हैं तो इसे लड़ाई से नहीं हराया जा सकता। हमें ऐसी फौज तैयार करनी चाहिए, जो छिपकर, दरपर्दा लड़े और हम उसकी सहायता करें। उसके लिए उन्होंने मुजाहिदीन तैयार किए… कुछ कश्मीर से भी लिए। कुछ बाहर से लाए। कुछ एक को उन्होंने इस्लाम के नाम पर भडक़ाया, फिर पंजाब में उन्होंने… मतलब कि अकालियों ने जिस तरह कहा था कि सिखों के साथ ज्यादती हुई, पंजाब के साथ ज्यादतियां हुईं… उससे लोगों के मन में एक भ्रम-सा तो फैला ही था। जबकि सबसे प्रीलिमनरी कौम थी पंजाबी। सबसे ज्यादा इन्वैस्टमेंट जो हुई, भाखड़ा में हुई, जिस वक्त भाखड़ा भरा था, उस वक्त हिंदुस्तान में दो लाख टन सीमेंट बनता था। और सत्तर हकाार टन सीमेंट भाखड़ा में एक महीने में लगता था। जो हिंदुस्तान का टोटल सीमेंट था, उसका चालीस-पचास प्रतिशत सीमेंट भाखड़ा में खप जाता था। भाखड़ा सीमेंट से बना पूरे का पूरा। जो स्टील का सरिया बना, टाटा स्टील वाले बनाते थे। मंडी गोबिंदगढ़ तो छोटा-छोटा सरिया बनता था। जो बड़ा था, उसे टाटा वाले बनाते थे। वह सारा स्टील यहां आता था। इतना बड़ा मैसिव स्ट्रक्चर खड़ा करने के लिए…। नहरें बनी, और भी बहुत कुछ बना।… फिर भी वे भढक़ाते रहे लोगों को। अकालियों के पास नारा तो कोई था नहीं, सत्ता उनके पास आती नहीं थी। चूंकि हरियाणा बहुत बड़ा था, हिंदुओं की मेजोरिटी थी, सत्ता उनके पास आ नहीं सकती थी। फिर पंजाब छोटा किया। फिर उसे… पहले कहते थे सिखों के साथ ज्यादती है… फिर जब पंजाबी सूबा बन गया, तो भी कहते कि सिखों के साथ ज्यादती है…! अब जैसे पहले ताकत माझा के पास थी, फिर मालवा के पास चली गई। माझा नेगलेक्ट हो गया। गुरदासपुर वगैरा…! इधर बहुत गरीबी थी। बेकारी, कोई डेवलपमेंट हुई ही नहीं। जो नौजवान थे, फिर उनके सिर पर भी और दूसरे लोगों के सिर पर भी कर्ज चढ़ गया। उनके लिए एम्पलायमेंट का एवेन्यू कोई नहीं था। उनके मनों में फिर एक बात बैठ गई कि ताकत से हासिल करो, और पाकिस्तान से जो स्मग्लर थे, यानि जो नैक्सस था, स्मग्लरों का, वो जो पुराने थे, पहले आतंकवादी बने, वे सभी स्मग्लर थे। वे नोरकैट की स्मग्लिंग करते थे। साथ में फिर बंदूकें आनी शुरू हो गईं। साथ ही बहुत कुछ और भी आया। भिंडरांवाला आ गया, भिंडरांवाला को कांग्रेस लाई, फिर उसे इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। साथ में सुबेग सिंह मिल गया। सुबेग सिंह, जो था, वह बांगलादेश में जो ‘मुक्ति वाहिनी’ थी, सुबेग सिंह ने तैयार की थी। उसे डिसमिस कर दिया। फौज में जो सबसे सख्त सकाा है, वह डिसआनर्ड करना है। यानी उसके तमगे उतार लिए जाते हैं, उसे डिसआनर्ड करके निकाल दिया जाता है। वह अपने नाम के साथ कोई भी पद नहीं लगा सकता। कुछ सिपाही उसे आगे लगा लेते हैं, और कंटोनमेंट से बाहर निकाल देते हैं। उसके मन में दुश्मनी भी थी। और अकालियों के साथ…। फिर जब स्टेट का हो गया, वह स्टेट पर कब्जा करने लगे, तो फिर स्टेट आगे आ गई, फिर स्टेट का टैररिज़्म आ गया। फिर स्टेट टैररिज़्म के ब$गैर तो कुछ बदला ही नहीं जा सकता…। 

‘काले अंग्रेज मादरचोद…! काले अंग्रेज मादरचोद…!’

फिर फौज आई। फिर गिल आया। फिर गिल और बेअंत सिंह के वक्त इनका जोड़ बन गया।… बेअंत सिंह खुद तो जीता ही नहीं था, उसे तो जिताया गया था। पहले अकाली बरनाला जिताया गया था। बरनाला भी जिताया गया था, कांग्रेसी कमकाोर किए गए थे। पर वह काम चला नहीं। फिर इन्हें लाया गया…। जो स्टेट टैररिज़्म और एंटी स्टेट टैररिज़्म है, ये दोनों भाई-भाई ही हैं। बस थोड़ा सा अंतर है, स्टेट अपने राज्य के लिए करती है, उनका अपना वर्क है…। स्टेट ने, अब देखिए, पंजाब में भ्रष्ट करने के लिए अपने आदमी छोड़े। उनमें से कुछ ब्लैक कमांडो भी बनाए, उनसे वह बलात्कार भी करवाते थे।… यानी कि औरतों के साथ संबंध बनाना, गलत कामों पर… यानि उसे डी-जनरेट किया, ताकि लोग इनके खिला$फ हो जाएं। … जब वह स्टेज आई, तो फिर आतंकवादी पकड़े जाने लगे। लोगों के मनों में नफरत फैला दी।… यानि गलत काम करवाए, जिनके कारण लोग इनके खिला$फ हो गए।  

‘काले अंग्रेज मादरचोद…! काले अंग्रेज मादरचोद…!’

… अब मैं बता रहा था पाकिस्तान के बारे में। टैररिज़्म को समझने के लिए इसे जानना बहुत जरूरी है। अब पहले जो पाकिस्तान की सरकार थी, वह फ्यूडल सरकार ही थी। पाकिस्तानी पंजाब में मुस्लिम लीग का कोई काोर नहीं था। सिंध में कांग्रेस की सरकार थी। मुहम्मद सईद जो था, वह नेश्नलिस्ट था। जो ब्यूरोक्रेट थे, वे कुछ इरानी थे। जो अवध का नवाब था, वह था। हैदराबाद का निकााम जो था, वह नूरजहां के परिवार में से था। और वो जो थे, वे सभी मुसलमान थे, वो सभी पाकिस्तान चले गए। यहां जो मुसलमान थे, वे मुलकी थे। बहुत कम फैमलियां यहां रहीं। बाकी सभी पाकिस्तान चले गए थे। और उन्होंने कराची जाकर वहां उन्हें बसा दिया। वहां पाकिस्तान में जो स्टेट स्ट्रक्चर था, उस पर जो कब्जा है, वह एक तरह से फौज का भी है, जागीरदारों का भी है। इसलिए वहां सिविलियन राज्य बनता ही नहीं, वहां लोकतंत्र कायम ही नहीं होता। जिस वक्त देखते हैं कि हमारा काम पूरा नहीं हो रहा, वे फौज ले आते हैं। अब जो भुट्टो थी, और जो जरदारी है, बड़े-बड़े जागीरदार हैं। लाख-लाख, दो-दो लाख एकड़ कामीने हैं। जगीरदारी $खत्म ही नहीं होनी, $खत्म इसलिए नहीं होनी, क्योंकि वहां जो मुसलमान हैं, कुछ तो कामीन के पहले मालिक थे। पंजाब में जागीरदारी सिस्टम नहीं था। जागीरदारी जो थी, मुगलों के वक्त थी। आगरा और जो पंजाब का राज्य था, वे स्टेट के अंडर थे। यह राजे की मलकियत होता था। मुगल बादशाह जो था, यह कामीन उसकी थी। यहां जो किसान थे, वह सीधे किंग को रैवेन्यू देते थे। जो जागीरदारी थी, वह लखनऊ से आगे-आगे थी। यहां कोई बड़ा जागीरदार नहीं था, उत्तर प्रदेश का अभी जो पुराना रिकार्ड लेना हो, आगरा जाकर लाते हैं। पंजाब में भी कोई जागीरदारी नहीं थी। पैप्सू में थी जागीरदारी, पंजाब में कोई बड़ा जागीरदार नहीं था। अमृतसर, जालंधर, लुधियाना कोई जागीरदार नहीं था। यहां मिडल पेजैन्ट्री थी, यह किंग के अधीन होती थी। उधर भी जो थी, पेजैन्ट्री, वह जागीरदारी सिस्टम के अंडर थी। पाकिस्तान वाली। $खासकर सिंध में। सिंध में और मुलतान से आगे-आगे। अफगानिस्तान और बलोचिस्तान तो वैसे ही कबायली इलाके, वे कोई खेतीप्रधान तो थे नहीं। सिध में सारा जागीरदारी सिस्टम था। हारी कहते थे, जो खेतीहार मुजारे थे, उनको हारी कहते थे। जो खेती करते थे। हारियों का मामला ऐसा था कि किसान जिस वक्त मर्जी हो, उन्हें रख लें और जब जी चाहे, निकाल दें। नीमगुलामों वाली किांदगी थी उनकी।… और जो इधर से मुसलमान गए थे… हिन्दू वहां इतनी जमीन छोडक़र आए थे कि बाद में वहां पर स्कीम बनाई गई कि प्रति मेंबर एकड़ जमीन मिलेगी। यानी जितने मेंबर हैं, चाहे वह मरासी है, जो भी हैं, उन्हें एक एकड़ प्रति मेंबर दे दिया। समझो, अगर किसी के फैमिली में पांच मेंबर हैं, तो उन्हें पांच एकड़ कामीन दे दी। उसे प्रति मेंबर एकड़ स्कीम कहते थे। जो यहां से गए सभी, यह नहीं कि इधर कितनी कामीन के मालिक थे, वह नहीं मिली। वह तो मिली ही, साथ ही प्रति एकड़ मेंबर के हिसाब से भी कामीन मिली, बेकामीनों को भी मिली। परन्तु जिस वक्त वहां।… वह प्रति मेंबर एकड़ वाली स्कीम बाद में उन्होंने पलट दी। अब वे लोग किसान तो नहीं थे, उनसे खेती हुई ही नहीं। औकाार भी नहीं थे। फिर जागीरदारों ने वे कामीनें खरीद लीं। सस्ती खरीद लीं…। 

‘पाकिस्तान मादरचोद…! पाकिस्तान मादरचोद…!’  

… फिर पाकिस्तान ने इधर इनडायरेक्ट वार शुरू कर दी। पहले कश्मीर में शुरू की। यह इनडायरेक्ट वार थी। पूरा अस्लहा वहां से आता था। मद्दोरसद भी वहां से आती थी। उसका मतलब था कि हिंदुस्तान को, वे समझते थे कि हम हिंदुस्तान को कमकाोर नहीं कर सकते।… तुझे पता है, एक बार मान को चिट्ठी लिखी थी, लाल डिंगे ने…। लाल डिंगे मिकाोरम का लीडर था। मिकाोरम में ब$गावत उसने करवाई थी। उसने इसे चिट्ठी लिखी। जिस वक्त मिकाोरम का समझौता हो गया, लाल डिंगे के साथ, उन्होंने मुख्यमंत्री उतारकर कह दिया कि आप अपनी सरकार बना लें, यानि आदमी कमकाोर किए कि तुम बना लो, राज्य चलाओ…, उसने राज्य चलाया। तो वह जो चिट्ठी लिखी थी… उसने कहा कि मैंने सत्रह साल ब$गावत की। मुझे जो मदद देते है, पैसे की मदद देते है, हथियारों की मदद देते थे, जिस वक्त मैने उन्हें कहा कि मैं आकााद डिक्लेयर करता हूं, मुझे मान्यता दो, तो उन्होंने कहा कि मान्यता नहीं मिलेगी। मैं समझ गया कि वे हमें इस्तेमाल कर रहे थे, हिंदुस्तान को कमकाोर करने के लिए। हमें राजनीतिक हक देने के लिए वे तैयार ही नहीं थे। मैने कहा, फिर लोगों को क्यों मरवाए, नौजवान लडक़ों को… और तुम ऐसा करो कि जो ताकतें तुम्हें मदद करती हैं, उनसे पूछो कि क्या वे हमारे खालिस्तान को मान्यता देंगे, वे नहीं देंगे। मान जो ठंडा हुआ, उसकी चिट्ठी के बाद ठंडा हुआ। वह जेल में था। उसने जेल में चिट्ठी भेजी।… यह कि उन्होंने मान्यता नहीं देनी। तुम लोगों को लड़ाएंगे, मरवाएंगे। लडक़े मारे जाएंगे। तुम भी मारे जाओगे, पर वे मान्यता नहीं देंगे। तुम लोगों को वह जेलों में बंद कर देंगे। और बनेगा कुछ नहीं। क्योंकि हिंदुस्तान की स्टेट इतनी ताकतवर है, वह दस-बीस साल लड़ सकती है, दो लाख आदमी मरवा भी सकती है। बहुत हैं भर्ती होने वाले लोग। और तुम्हारी जो लड़ाई है, वह स्टेट के साथ है, उसे कांग्रेस सरकार न समझो। यह स्टेट के साथ लड़ाई है। स्टेट और कांग्रेस का फर्क समझो, और स्टेट जो है, बहुत बेरहम होती है। फिर ये सभी लीडर जो थे, इन्होंने समझ लिया कि अब पीछे हटना बहुत कारूरी हो गया है। यह जो राजीव-लौंगोवाल समझौता है न, उसी सोच में से निकला है। …फिर इन्होंने बेअंत सिंह और गिल को आगे कर दिया, उन्होंने साल भर में सब कुछ साफ कर दिया।

‘स्टेट मादरचोद…! स्टेट मादरचोद…!’

अब तुम्हें नक्सलियों के टैरर की बात बताता हूं, वे भी ऐसा ही करते थे, जागीरदारों को मारते थे। जनता तुम्हारे साथ मिल जाएगी, पर नहीं, लोग तो दहशत में आ जाते थे। तुम्हें मैं एक बात बताता हूं, जो पहले कम्युनिस्ट पार्टी होती थी, रणदिवे जब बन गया न, तब बहुत से कामरेड जेलों में थे। इन्होंने कहा कि तुम जेलों में नारे लगाओ, लोग तुम्हारे साथ हैं। तुम्हें तो लोग ही छुड़ा लेंगे, जेलें तोड़ देंगे। लोग तो सभी भारत सरकार के खिलाफ हैं। वह आकाादी को मानते ही नहीं। हुआ इसके उलट। जो जेलों में थे, पीट-पीट कर मार दिए गए। भीतर ही पीट धरे। कोई नहीं उठा। दस आदमी भी नहीं निकले बाहर।… यानी जब तुम अपनी ताकत का गलत अंदाकाा लगा कर एजीटेशन करते हो, उसमें टैररिज़्म के अंश आ जाते हैं। हर पार्टी में आ जाते हैं। तभी अपनी ताकत का गलत अंदाजा लगाते हो। स्टेट को कमकाोर समझते हो, पार्टी को समझना चाहिए कि कांग्रेस की सरकार है… वह स्टेट के स्ट्रक्चर को भूल जाती है कि स्टेट क्या है। जो आज स्टेट है, उसमें जो इकाारेदार हैं, जागीरदार हैं, वे चाहते नहीं कि उन्हें हिस्सा चाहिए? वे तो राज्य भी नहीं चाहते। उन्होंने वैट लगाया कि एक समान टैक्स हो। उन्होंने कई ऐसे टैक्स लगाए कि अब तो राज्य की ताकत ही कम रह गई है। प्राइवेटों के पास चला गया। पहले जो आते थे, टाटा-बिरला का नाम लेते थे। अब कोई टाटा-बिरला का नाम नहीं लेता…! सभी जो सरकारें हैं, ईवेन वामपंथी सरकारें भी दावत देती हैं कि आओ जी, पूंजी लगाओ। जो टाटा-बिरला का नाम लेते थे… अब कॉमरेड जो भट्टाचार्या है, वह कहता है, आओ टाटा साहब, हमारे यहां कारखाना लगाओ। हम तुम्हें कामीन मु$फ्त में देते हैं, कर्ज देते हैं, पांच साल टैक्स नहीं लेंगे। इनकम टैक्स नहीं लेंगे, तुम हमारे यहां आओ। …कोई लेता नाम अब? जिन्हें क्लास एनेमी समझते थे, वे क्लास एनेमी नहीं हैं। उन्हें सभी बुलाते हैं। वे बहुत रौब के साथ जाते हैं। पहले एसे होता था कि किसी को मुख्यमंत्री से समय लेना हो, तो वह समय नहीं देता था। अब खुद समय मांगता है उनसे। अंबानी के पास मुख्यमंत्री मुम्बई जाते हैं जहाज पर। किअंबानी साहब हमें समय दो, मित्तल साहब हमें समय दो।

‘निकााम मादरचोद…! निकााम मादरचोद…!’

… वैसे यह नहीं है कि स्टेट बदलती नहीं। स्टेट बदलती भी है। अब अमेरिका में बदली है ना। जनता में ऐसा उभार आया कि उन्होंने बदल कर रख दिया, स्टेट बदली। अमेरिका का राष्ट्रपति कह सकता था कि तुम अपना वेतन बंद करो, कम करो, पाबंदी लगाओ। तुम पांच-पांच लाख खर्च कर एक-एक आदमी जहाकाों में बैठ कर आते हो। हमारे पास से पैसे मांगते हो, स्टेट से, और दस-दस लाख तुम अपनी पार्टियों पर खर्च कर देते हो। शाम को जश्न मनाते हो। पचास हकाार तुम मालिश करवाने पर खर्च कर देते हो। आज से पहले बुश कह सकता था? और स्टेट जो है वह लोगों के प्रेशर में ज्यादा उछलती भी नहीं।  अब जो शाह-शुह उछले, वे उलट गए!

… अच्छा, एक बात और है कि टैररिज़्म जहां धर्म के साथ जुड़ जाता है, वहां बहुत खतरनाक हो जाता है। अब जिस तरह पाकिस्तान वाला है। टैररिज़्म योरप में भी है, इटली वगैरा में भी हो रहे हैं। पर वहां धर्म से जुड़े हुए नहीं हैं। वह कुछ अलग चाहते हैं, पर जहां धर्म का जुनून आ जाता है, वहां खतरनाक हो जाता है। पंजाब में धर्म का जुनून रहा। जब दहशत से धर्म जुड़ता है, वह ज्यादा खतरनाक होता है। अब जो लोगों को डराता है, उसकी कई बार स्टेट भी मदद करती है। पंजाब में बहुत बार हुआ कि राज्य अपना धर्म नहीं निभाता। वह स्टेट टैररिज़्म है। अब जब पंजाब में पंचायती चुनाव के समय हिंसा हुई। यह स्टेट टैररिज़्म का ही हिस्सा है। यह जब धीरे-धीरे बढ़ेगा, तो बात बंदूक तक भी जाएगी…। यह है टैररिज़्म…!  कहने का मतलब यह है कि जब से स्टेट बनी है, टैररिज़्म तब से ही चला आ रहा है…!

‘सारे मादरचोद…! सारे मादरचोद…!’

… उफ यार इस पागल को साथ में क्यों ले आए। पता नहीं, अब किस-किस के नाम गालियां बक रहा है

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