‘धार्मिक मुखौटा’ के पीछे छिपी वासना
जब “भक्ति” का रूप “अंधविश्वास” में बदल जाता है, तब यही श्रद्धा अपराधियों के लिए ढाल बन जाती है।
धार्मिक चोले में छिपी वासना, शक्ति की भूख और मानसिक विकृति – आज समाज के सामने सबसे बड़ा सवाल बनकर खड़ी है:
क्या हम सच में “गुरु” की भक्ति कर रहे हैं, या “पाखंड” की पूजा?
1. “सत्ता” और “पावर” का नशा
कई “बाबा” या “गुरु” समय के साथ भक्तों पर इतना असर बना लेते हैं कि उनके हर शब्द को लोग “ईश्वर की वाणी” समझने लगते हैं। ये सत्ता और सम्मान धीरे-धीरे उनके अंदर सुपर inferiority complex पैदा कर देता है। उन्हें लगने लगता है कि “मैं कुछ भी करूं, लोग सवाल नहीं करेंगे।” यही अहंकार उन्हें अपराध की ओर धकेल देता है।
2. ‘धार्मिक मुखौटा’ के पीछे छिपी वासना
कुछ लोग शुरू से ही धार्मिक नहीं होते, बल्कि धर्म को ढाल बनाकर अपनी वासना को पूरा करने का साधन बना लेते हैं। वो जानते हैं कि “गुरु” का रूप धारण करने से लोग उन पर आँख बंद करके भरोसा करेंगे। इस भरोसे का फ़ायदा उठाकर वो यौन शोषण जैसे अपराध करते हैं। इसे मनोविज्ञान में “opportunistic predator” कहा जाता है – यानी मौका देखकर अपराध करना।
3. ‘आध्यात्मिक विशेष अधिकार’ का भ्रम
कुछ तथाकथित संत यह प्रचार करते हैं कि उनके “आशीर्वाद” या “स्पर्श” से मुक्ति मिलती है।
धीरे-धीरे वो खुद को “सामान्य इंसान से ऊपर” समझने लगते हैं। ऐसे में वो खुद को हर नियम से “ऊपर” मानने लगते हैं।
4. मानसिक विकृति (Psychopathy / Narcissism)
कई बार ऐसे लोग बचपन से ही मानसिक विकार जैसे नर्सिसिज़्म (स्वयं को सबसे बड़ा मानना) या सायकोपैथी (दूसरों की पीड़ा से फर्क न पड़ना) से ग्रसित होते हैं। ऐसे लोग दूसरों की “सहमति” या “सम्मान” की परवाह नहीं करते। उनके लिए इंसान केवल “उपयोग की वस्तु” बन जाता है।
5. क़ानून और समाज की ढिलाई
अक्सर ऐसे मामलों में लोग शर्म या डर की वजह से चुप रहते हैं। कोई शिकायत नहीं करता, तो अपराधी और भी “बेखौफ” हो जाता है।और जब तक समाज और क़ानून सख़्त कदम नहीं उठाते, तब तक ऐसे लोग अपनी हरकतें जारी रखते हैं।
“संत” कहलाने वाले सभी लोग ऐसे नहीं होते, लेकिन जो लोग इस पवित्र पद को वासना, सत्ता और अपराध का माध्यम बना लेते हैं, वे असल में संत नहीं – बल्कि अपराधी होते हैं। उनकी मानसिकता “आध्यात्मिकता” नहीं बल्कि वासना, शक्ति-लालसा और नैतिक पतन से भरी होती है।
हिंदआर्टिस्ट / www.hindartist.com