‘हिम्मत पहाड़ जैसी विशाल’
हौसलों ने कहा—चल पड़, चाहे अंधेरा हो,
हर सवेरा डर के पीछे ही होता है।
हिम्मत टूटे नहीं इस दिल की कभी,
क्योंकि ज़िंदगी हर रोज़ इम्तिहान लेती है।
शरीर चाहे बड़ा हो या छोटा मोटा हो या पतला, हिम्मत जरूर पहाड़ जैसी विशाल होनी चाहिए। एसी ही कहानी है एक मेरी छोटी से प्यारी सी दोस्ट ‘नीनू‘ की जो, हर मुसीबसत को हिम्मत से हल कर लेती।
हम बात कर रहें हैं नीनू की जो एक चींटी हैं।
सावन के महीने में बारिश लगातार हो रही थी। और नीनू छोटे से मैदान में अपने खाने का दाना खोज रही थी। बारिश की बूंदें इतनी भारी थीं कि उसके लिए एक-एक कदम चलना भी मुश्किल था। हर बार जब नीनू कोई दाना उठाती, एक बड़ी बूँद गिरती और उसे पीछे धकेल देती।
कई बार उसका दाना पानी में बह गया। कई बार वह खुद भी फिसल कर कीचड़ में गिर गई।
बाकी कई चींटियाँ हार मानकर अपने बिलों में छुप गई थीं।
लेकिन नीनूं ने खुद से कहा,
“जीना है तो हार नहीं मानुंगी। दाना नहीं मिलेगा तो पूरा परिवार भूखा रह जाएगा।”
उसने फिर से कोशिश की।
इस बार उसने एक पत्ता ढूंढा, उसे ढाल की तरह सिर पर रखा, और धीरे-धीरे दाना घसीटते हुए आगे बढ़ी।
फिसलते हुए, भीगते हुए, काँपते हुए – लेकिन रुकी नहीं।
आखिरकार वह दाना अपने बिल तक पहुँचा लाई।
पूरा परिवार नीनू की बहादुरी देखकर खुश हो गया। सबने मिलकर उसका स्वागत किया।
उस रात जब बारिश की आवाज चारों और गूंज रही थी, नीनू मुस्कुरा रही थी।
उसे पता था –
“संघर्ष चाहे जितना बड़ा हो, अगर जीने की जिद हो, तो जीतना मुमकिन है।”
“छोटी सी जान भी बड़ी उम्मीद से जिंदा रहती है।
जो संघर्ष से डरते नहीं, वही सच में जीते हैं।”
हिंदआर्टिस्ट / www.hindartist.com