जीन्स DNA / short story

जीन्स DNA

हमारे समाज में यह आम सी बात है कि अपने ही परिवार के बच्चों के चहरे आपस में मेल खाना या उनकी ही तरह रहना, उठना बैठना, चलना और बोलना। ऐसा ही एक किस्सा है एक व्यक्ति का जिसको ऐसा लगता है कि मैं यह जीवन जी चुका हूं, वो कहीं भी जाता तो उसको लगता कि मैं यहां पहले कभी आया हूं, किसी व्यक्ति से मिला तो व सोचता है कि इसे भी पहले कभी मिला हूं और ये बातें भी मैने पहले कभी सुनी लगती हैं, वो हर पल को महसूस करता, कैसे?
हम बात कर रहें हैं जीन्स की…

हम उस व्यक्ति की बात कर रहें है जिसका नाम राज है और उसका जन्म 1978 में हुआ। उसके पैदा होते ही दादी ने कहा, “ये तो हमारे बाबा ‘तांवर’ की छाया है। आंखें भी वैसी ही गहरी, और माथे पर वैसा ही तिल।”
उनके घर का बुजुर्ग जिसका नाम तांवर हैं कई साल पहले एक रहस्यमय मौत का शिकार हुए थे। कहा जाता है कि उन्होंने जंगल में कुछ चीजें ऐसी देख रखी थी जिसके बारे में हमारे घर में न ही किसी को पता था और न ही कभी कोई जंगल की तरफ गया था।

जैसे-जैसे राज बड़ा तो वो अपने बाबा तांवर की तरह वही आदतें दिखाने लगा, सूरज उगने से पहले उठना, पुराने जंगल की तरफ खिंचाव, और वैसा ही हस्ताक्षर जैसे उनके बुजुर्ग तांवर की पुरानी डायरी में थे।

एक दिन उसने अपने पिता से कहा, “पिताजी, उस पहाड़ी के पीछे एक गुफा है जहाँ नीले पत्थर की लकीरें हैं… मुझे ऐसा लगता है कि जैसे मैंने देखा है।” वो हैरान परेशान हो गए कि यह क्या बोल रहा है ये तो कभी गया ही नहीं वहां पर और न ही हम। तभी उन्हें ख्याल आया की हममम…. वहां तो हमारे बाबा ‘तांवर’ जाया करते थे, उनका खिचाव बहुत तो उस तरफ, यह तो बिल्कुल उनकी तरहा ही बात करता है और बैठना उठना सब उनकी तरह है ।

जीन्स……
एक वैज्ञानिक जो जेनेटिक मेमोरी पर रिसर्च कर रहे थे, उनका मानना था कि कुछ जीन में मेमोरी पैटर्न्स भी ट्रांसफर होते हैं, और कभी-कभी वो तीसरी पीढ़ी में दोबारा “जाग” जाते हैं। गांव के लोग इसे “वंशवृत्ति का चक्र” कहते हैं।

हिंदआर्टिस्ट / www.hindartist.com

Leave a Reply

You are currently viewing जीन्स DNA / short story