राखी…
एक धागा, जो सिर्फ कलाई से नहीं, आत्मा से बंधता है। यह त्यौहर भाई-बहन के रिश्ते की डोर है, जो हर परिस्थिति में भावनाओं को जोड़ती है । चाहे वह सीमाओं पर तैनात सैनिक की थकी हुई हथेली हो, या जेल की सलाखों के पीछे पछताता एक भाई। कभी यह राखी एक अनाथ बच्चे को पहली बार रिश्तों का स्वाद चखाती है, तो कभी ट्रांसजेंडर बहन को समाज से स्वीकार्यता और अपनापन दिलाती है।
आज के दौर में जब अपनों से दूर रहना भी एक मजबूरी बन गया है, तो मोबाइल स्क्रीन भी राखी के बंधन को रोक नहीं पाई। दूर बैठे भाई को बहन की डिजिटल मुस्कान और राखी की झलक भी वही एहसास देती है जो बचपन की मिठास भरी शरारतें दिया करती थीं।
राखी सिर्फ एक त्यौहार नहीं, एक जज़्बा है , जो युद्ध के बीच भी बहन को उम्मीद से जीने देता है, जो अपनों के खो जाने पर भी संबंधों को जन्म देता है। यह त्यौहार हर उस रिश्ते को मान सनमान देता है, जो खून से नहीं, भावना से जुड़ा है । यही राखी की सबसे खूबसूरत परिभाषा है ।