“वो औरत थी… इंसान नहीं।”

“वो औरत थी… इंसान नहीं।”


उसे इज़्ज़त नहीं, शक की नज़र मिली।
उसकी मुस्कान में मोहब्बत नहीं, मनहूसियत देखी गई।
कभी पेट में बच्चा न ठहरे तो “डायन” कहलाती थी,
और कभी ज़्यादा बोल दे तो “अपशगुनी”।

गाँव की पंचायतों ने फतवे नहीं सुनाए
उन्होंने औरत की देह पर इंक़लाब की जगह ईंटें बरसाईं।
उसके बाल काट दिए गए,
उसकी देह को नंगा कर जुलूस निकाला गया,
और कभी-कभी तो उसे मल तक खाने पर मजबूर किया गया।

क्यों?
क्योंकि वो “औरत” थी।
क्योंकि वो “कमज़ोर” थी।
क्योंकि वो “सवाल” करती थी।

यह 18वीं सदी नहीं… यह समाज की वो काली सच्चाई है
जहाँ कुछ गाँवों में औरत का सबसे बड़ा अपराध है —
ज़िंदा होना।

 

हिंदआर्टिस्ट / www.hindartist.com

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