महिलाओं को मल खिलाना, बाल काटना और कपड़े उतारकर घुमाने और जिंदा जलाने की दी जाती है सजा
“डायन” बताकर करीब 2500 से अधिक महिलाओं की सजा के रुप में मौत
“जब औरतें चिल्लाईं… और दुनिया खामोश रही…
“वो किसी की माँ थी, किसी की बहन, किसी की बेटी थी। मगर गाँव की चौपाल ने उसे “डायन” कह दिया।
हाल ही में ‘डायन’ के नाम पर बिहार के पूर्णिया के टेटगामा गांव के एक युवक के माता-पिता, दादी, भाई और भाभी को जिंदा जला दिया गया की उनमें डायन है । सदियों से चली आ रही इस प्रथा का अंत न होना बहुत ही दुखद है। राष्ट्रीय आपराधिक ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक साल 2000 से लेकर अब तक भारत में डायन बताकर करीब 2500 से अधिक महिलाओं मार दिया गया है। आज के युग में भी डायन का आरोप लगाकर महिलाओं को जिंदा जला देना और इसके अलावा सामाज से उनका बहिष्कार, उन्हें अपना मल मूत्र खिलाना, यौन हिंसा, मारपीट जैसी सजा दी जाती है।
इनमें सभी जाति की महिलाएं : रोजगार के नाम पर 67 फीसदी महिलाएं, दिहाड़ी मजदूरी करके अपना काम चला रही थीं। बिहार में महिलाओं के बीच काम करने वाले संगठन बिहार महिला समाज ने इस मामले के सामने आने के बाद कहा है कि संगठन अपना एक जांच दल पूर्णिया भेजेगा और इस मामले के खिलाफ पूरे बिहार में आंदोलन करेगा।
यूरोप में 1734 में कर दिया गया था डायन प्रथा को खत्म : भारत में ही नहीं डायन प्रथा पूरी दुनियां में ही है। यूरोप और अमरीका के कई इलाकों में तेरहवीं शताब्दी से लेकर सत्रहवीं शताब्दी तक, महिलाओं को अलग अलग कारणों से डायन बता कर जिंदा जला दिया जाता था। कई मामलों में पुरुषों के साथ भी ऐसा होता था। 18वीं शताब्दी आते-आते कई देशों में इसके खिलाफ कानून लाए गए। आखिरकार इस प्रथा पर रोक लगी, हालांकि इस बात का कोई आधिकारिक आंकड़ा मौजूद नहीं है कि कितने लोगों की मौत इस अंधविश्वास के कारण हुई।
यूरोप में आखिरी बार 1734 में डायन बताकर जिस महिला का सिर कलम किया गया, उसका नाम आना गोल्डी था। इतिहास में उनका जिक्र आखिरी डायन के नाम से भी मिलता है। यह करीब ढाई सौ साल पहले का यूरोप था, लेकिन वर्तमान के भारत के कुछ राज्यों में आज भी डायन प्रथा जारी है। साल 2025 में भी किसी महिला के आखिरी डायन होने का दावा नहीं किया जा सकता। इस प्रथा के जार रहने की वजहें आज भी वही हैं।
हिंदआर्टिस्ट / www.hindartist.com