ईश्वर एक, प्रचार अनेक

ईश्वर एक, प्रचार अनेक

जब मैं किसी धर्म का प्रचार या ‘नारा’ सुनता हूं तो अंदर ही अंदर एक खौफ सा खाने लगता है। मैं यह सोचता हूं कि जब भगवान एक है तो ये क्यों हमने अलग-अलग भगवान बनाकर और उनकी धारणा तैयार कर बैठा दिया है।
हम भगवान के पास जाते ही इसिलिए हैं जब हम पर कोई बड़ी आपदा आ गई हो, या आपने भगवान से कुछ मांगना हो। सब धर्म एक है ईश्वर की तरफ जाने का रास्ता दिखाते हैं। जिस प्रकार कोई भी नाव हमें नदी के पार पहुंचा सकती है उसी प्रकार कोई भी धर्म हमें ईश्वर तक जाने का रास्ता दिखाता है। कोई भी छोटा बड़ा नहीं होता।

रास्ता एक ही है…
हमारे गांव में रहने वाले सभी अलग-अलग धर्मों के लोग मिलजुल कर रहते थे। गांव के बीचों बीच बहती है एक छोटी नदी, जल से भरी बिल्कुल शांत , और गांव वालों की ज़िंदगी का हिस्सा। इस नदी के दो किनारों पर दो मंदिर थे, एक ओर एक पुराना शिव मंदिर, दूसरी ओर एक दरगाह, जहाँ हर शुक्रवार को लोग चादर चढ़ाने आते।

गांव में एक लड़का था, मोहन। वो नौवीं कक्षा में पढ़ता था, बुद्धिमान था लेकिन थोड़ा उलझा हुआ। उसकी दादी अक्सर कहतीं, “भगवान सबमें हैं बेटा, चाहे वो राम कहो, रहमान कहो या वाहेगुरु।” मगर मोहन के कुछ दोस्त अक्सर मज़ाक करते, “हमारा ही धर्म सच्चा है, बाकी सब ढोंग हैं।”

एक दिन स्कूल में एक प्रतियोगिता हुई, विषय था “ईश्वर (भगवान) एक है”। मोहन इस पर कुछ लिखना चाहता था, लेकिन वह खुद भ्रमित था कि क्या वाकई सब धर्म एक हैं?

उसी रात मोहन नदी किनारे गया, और वहीं एक बुज़ुर्ग से मिला, उनको सभी काका बुलाते थे। वे हर दिन लोगों को अपनी नाव से नदी पार करवाते थे। मोहन ने उनसे पूछा, “काका, क्या सच में सब धर्म एक जैसे होते हैं? सबका भगवान अलग-अलग है ना?”

काका मुस्कराए। उन्होंने मोहन को नाव में बिठाया और नदी के उस पार ले जाने लगे।

“बेटा,” काका बोले, “ये देख, नदी एक है, दो किनारे हैं। अब सोच, अगर तुझे उस पार जाना है, तो क्या फर्क पड़ता है कि तू किस नाव से जाता है, मेरी लकड़ी की नाव से, या किसी और की नई नाव से?”

मोहन ने सिर हिलाया, “नहीं, कोई फर्क नहीं। मंज़िल तो नदी पार करना है।”

“बस बेटा,” काका ने कहा, “धर्म भी ऐसे ही हैं, नाव की तरह। कोई मंदिर जाता है, कोई मस्जिद, कोई गुरुद्वारा, सबका मक़सद एक है, परमात्मा से मिलना। धर्म रास्ता है, मंज़िल नहीं।”

मोहन को पहली बार यह बात समझ आई। अगले दिन उसने प्रतियोगिता में यही बात लिखी। एक नाविक की कहानी, जो सिखाता है कि हर नाव एक ही दिशा में चल सकती है अगर इरादा सच्चा हो।

जब उसका यह सब विचार लिखा गया तो, सारा स्कूल तालियाँ बजाने लगा। सभी ने उसे गले लगा लिया और कहा, “तूने दिल से लिखा है बेटा, और यही सच है।”

उस दिन मोहन ने अपने दोस्तों से भी कहा, “जो दूसरों के भगवान को छोटा समझे, वो अपने भगवान को भी सही से नहीं जानता।”

समय बीता, मोहन बड़ा हुआ। अब वो गाँव में एक स्कूल चलाता है, जहाँ हर बच्चे को ये सिखाया जाता है कि धर्म लोगों को जोड़ने के लिए है, तोड़ने के लिए नहीं।

 

हिंदआर्टिस्ट / www.hindartist.com

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